परिषद के अधिकारियों के स्थानान्तरण एवं तैनातियां।

संख्या- 11609-ए/रा0 वि0 प0 (ख)-87 ए/190 दिनांक फरवरी 14, 1972

मुझे निवेदन करने का निर्देश है कि उपर्युक्त प्रसंग में परिषद् द्वारा समय-समय पर अनुदेश निर्गत किये जाते रहें है। यह तो निर्विवाद है कि किसी अधिकारी का एक स्थान पर दीर्घ अवधि तक बना रहना न तो प्रशासन के न उस अधिकारी के ही हित में है। इससे एक ओर यह डर रहता है कि अधिकारी कहीं स्थानीय राजनिति में न फंस जाये दूसरी ओर यह हानि होति है कि अधिकारी का अनुभव सीमित रह जाता है और उसका दृष्टिकोण संकुचित हो जाता है जो कुशल प्रशासन के हित में नही है। परिषद का यह भी अभिमत है कि प्रत्येक अधिकरी को यथा सम्भव अधिक से अधिक शाखाओं में कार्य करने का अवसर देना चाहियें ताकि उसका अनुभव विस्तृत हो जाये तथा उच्च पदों पर सफलता पूर्वक कार्य करने की क्षमता आ जायें। कुछ समय से परिषद को यह परिलक्षित हुआ है कि इसका समुचित अनुपालन नहीं हो रहा है। अतएव, यह निश्चय किया गया है कि इस सम्बन्ध में पिछले सभी आदेशों का समावेश इस परिपत्र में कर दिया जाये जिससे उन सभी अधिकारियों का पथ प्रदर्शन हो सके। तैनाती एवं स्थानान्तरण के सम्बन्ध में परिषद् ने अनुलिखित सिद्धान्त अपनाये है-

(1) अधिकारियों का जल्दी-जल्दी स्थानान्तरण करने से जहॉ एक ओर कार्य क्षमता में हानि है वहॉ दूसरी ओर परिषद को यात्रा मद पर अनावश्यक व्यय भी करना पड़ता है। अतः समान्यतः किसी भी अधिकारी को जल्दी-जल्दी एक स्थान से दूसरे स्थान को स्थानान्तरित नहीं किया जाना चाहिये। विशेष प्रशासनिक कारणों से ही स्थानान्तरण अपवाद के रूप में किये जा सकते है।

(2) स्थानान्तरण का आदेश देते समय अधिकारी के होम डिस्ट्रिक्ट का भी ध्यान रखना चाहिये। अत्यन्त विशेष परिस्थितियों को छोड़कर, सामान्यतः किसी भी अधिकारी को अपने होम-डिस्ट्रिक्ट में तैनात नहीें किया जाना चाहियें।

(3) किसी अधिकारी को एक जिले में साधारणतया 3 वर्ष से अधिक समय तक न रखा जाये। प्रशासनिक या किसी अन्य कारण से अत्यन्त विशेष परिस्थितियों में यदि ऐसा करना आवश्यक हो तो परिषद् की अनुमति से ही ऐसा किया जा सकता है। ऐसे मामले अपवाद स्वरूप ही होंगे सामान्य रूप से नहीं।

(4) किसी अधिकारी की समान्यतः उसी जिले में उसी तथा अन्य किसी पद पर पुनः तैनाती न की जाये, जिस पर वह पहले रह चुका हो और पिछली तैनाती के बाद कम से कम 5 वर्ष तक तो किसी भी स्थिति में उसे पुनः उसी जिले में तैनात न किया जायें।

2. परिषद् को यह विदित हुआ है कि योजनाओं के लक्ष्यों की पूर्ति न होने का एक यह भी विशेष कारण रहा है कि उनसे सम्बन्धित अधिकारियों का योजनाकाल के मध्य ही स्थानान्तरण हो गया जिससे योजना कार्यो में शिथिलता आ गई। योजनाओं के महत्व को देखते हुए यह निश्चय किया गया है कि उन पर कार्यरत अधिकारी गणों को एक स्थान पर 5 वर्ष या आवश्यकतानुसाार उससे भी अधिक समय तक रखा जा सकता है। अतः ऐसे अधिकारियों का किसी योजना कार्य के मध्य स्थानान्तरण नहीं किया जाना चाहिये जब तक कि प्रशासनिक कारणें से यह आवश्यक न समझा जायें।

3. परिषद् में कुछ अधिभार पदों की विशेषता तथा कठिनाईयों को दृष्टिगत करते हुए अपवाद स्वरूप कुछ अधीक्षण अभियन्ताओं को एक मण्डल में (परिषद को सुचित करते हुए) 4 वर्ष तक रखा जा सकता है।

4. यह देखने में आया है कि स्थानान्तरण के आदेश प्राप्त होने के बाद अधिकारियों को तत्काल अवमुक्त नहीं किया जाता और दौड़-धूप कर देते है जिससे प्रशासनिक कठिनाई भी उत्पन्न हो जाती है। कुछ लोंगों का ख्याल है कि आदेश प्राप्त होने के सात दिन बाद ही स्थानान्तरित अधिकारियों को चार्ज देने के लिये बाध्य किया जा सकता है। यह बात सही नहीं है। स्थानान्तरण के आदेशों की प्राप्ति के दिन से एक सप्ताह के अन्दर सम्बन्धित अधिकारी को बिना उसके प्रतिस्थानी की प्रतिक्षा किये हुए आवश्य अवमुक्त कर दिया जाये तथा इसकी सूचना परिषद् को तुरन्त भेज दी जाये। यदि किसी विशेष परिस्थितिवश किसी अधिकारी को अवमुक्त करना तुरन्त सम्भव न हो तो आदेश पाते ही ऐसे विशिष्ट कारणों से परिषद् को अवगत कराना चाहिये।

5. स्थानान्तरण के आदेशों की प्राप्ति के पश्चात् अधिकारियों को किसी प्रकार का अवकाश, आकस्मिक अथवा उपर्जित, देना अवांछनीय है, क्योंकि इस प्रकार के अवकाश काल में वे अपने स्थानान्तरण के आदेशों को निरस्त कराने का प्रयास करते है जिससे एक ओर तो प्रशासकीय कठिनाई उत्पन्न होती है और दूसरी ओर अनुशासनहीनता को सहारा मिलता है। अतः यह आवश्यक है कि ऐसे अधिकारियों को सामान्य रूप से कोई अवकाश न दिया जाये और न स्थानान्तरण के विरूद्ध उनका प्रत्यावेदन ही अग्रसारित किया जाये।

6. बहुधा अधिकारी अपने स्थानान्तरण के सम्बन्ध में बाहरी दबाव डालने का प्रयास करते है। यह प्रवृत्ति अत्यन्त आपत्तिजनक है। इससे एक ओद तो अनुशासनहीनता फैलती है और दूसरी ओर परिषदीय कार्य में बाधा पड़ती है। परिषद् इस स्थिति को गम्भीर दृष्टि से देखते है और इस बात की पुनरूक्ति करते है कि यदि भविष्य में कोई अधिकारी इस मामले में किसी प्रकार का बाहरी दबाव डालने का प्रयास करेंगें तो वे अनुशासनिक कार्यवाही के भागी होंगे।

7. आपसे अनुरोध है कि आप उक्त आदेशों का भविष्य में कड़ाई से पालन करें जिससे स्थानान्तरण के आदेशों को कार्यान्वित करनें कोई प्रशासनिक कठिनाई न हो और परिषद् को किसी की शिकायत का अवसर न मिले।