सं0- 722-ज0श0-08/राविप-91 दिनांक: अप्रैल 27, 1991
परिषद के कार्यालय ज्ञाप सं0-849-के-आठ/एसईबी0-84/213ए-65, दिनांक 14-5-84 तथा सं0-2121-के-आठ/एसईबी-86/12-के-आठ/85, दिनांक 17-12-86 द्वारा समस्त मुख्य अभियन्ताओं (श्रेणी-प्रथम व द्वितीय) को उनके प्रशासनिक कार्य-क्षेत्रान्तर्गत किसी इकाई में अधिकारी वर्ग से निम्न संवर्ग/श्रेणी के स्वीकृत पदों मे से वहां के कार्यभार व स्वीकृत मानदण्डानुसर अनावश्यक (surplus) पदों को वहां नियंत्रणाधिकारी की पूर्व सहमति के उपरान्त तद्नुरूप किसी अन्य इकाई को वहां की औचित्यपूर्ण आवश्यकता को दृष्टिगत करते हुए सम्बन्धित अधिकारी की मांग के आधार पर परिविस्तारणार्थ प्राधिकृत किया गया है।
2- किन्तु इधर कुछ ऐसे आपत्तिजनक दृष्टान्त परिषद की जानकारी में आये है, जिनसे ऐसा प्रतीत होता है कि उक्त आदेशों के स्पष्ट उल्लंघन व अतिक्रमण के साथ ही उनकी आड़ में सम्बन्धित अधिकारियों द्वारा परिषदीय हित से सम्बद्ध वास्तविक कर्तव्य-पथ से हटकर उनका दुरूपयोग भी किया गया है।
इनमें से कुछ अनुचित उदाहरण निम्नवत् है:
अ- जिस इकाई से पदों का परिविस्तारण किया गया, वहाँ पर कार्यभार व स्वीकृत मानदण्डानुसार उनकी अपरिहार्य थी-अर्थात वे पद वहां पर कदापि अनावश्यक (surplus) नही थे।
ब- ऐसा करने के लिए सम्बन्धित नियंत्रणाधिकारी से पूर्व सहमति भी नहीं ली गयी और यह भी सुनिश्चित नही किया कि परिविस्तारित पद रिक्त थे अथवा भरे हुए।
स- जिस इकाई को पदों का परिविस्तारण किया गया, वहाँ पर उनकी कोई भी औचित्यपूर्ण आवश्यकता अथवा मांग नहीं थी।
द- उक्त परिस्थितियों में ही किसी व्यक्ति विशेष के स्थानान्तरण व समायोजनार्थ पदो का परिविस्तारण किया गया।
य- अनावश्यक रूप से परिविस्तारित ऐसे पदों पर नवीन अभ्यार्थियों/पदधारकों का चयन व उनकी नियुक्तियां भी की गयीं तथा इस प्रकार की आपत्तिजनक स्थिति के खुलासा होने पर उन्हें वापस/पुनः परिविस्तारित किया गया।
पूर्वोक्त अनियमितताओं को दृष्टिगत करते हुए उनकी पुनरावृत्ति रोकने तथा पदों के परिविस्तारण हेतु सन्दर्भगत परिषदादेशों का यथेष्ट अनुपालन सुनिश्चित करने हेतु एतद्द्वारा निम्न दिशा-निर्देश पुनः निर्गत किये जाते है:
क- स्वीकृत मानदण्डों तथा कार्यभार के अनुरूप पदों की कमी/आवश्यकता तथा उनके बाहुल्य (surplusage) के द्विपक्षीय आधार पर स्वीकार्य औचित्य के अनुसार ही परिविस्तारणार्थ कार्यवाही की जाय।
औचित्यानुसार उनकी संख्या का पूर्वनिर्धारण कर अति आवश्यक पदों के परिविस्तारण पर ही विचार किया जाय, उससे अधिक नही।
ख- ऐसा करने हेतु किसी इकाई से केवल अनावश्यक/फालतू (surplus) व रिक्त पदों को वहां के नियंत्रण अधिकारी की पूर्व सहमति के उपरान्त ही परिविस्तारित किया जाय, अन्यथा नही।
ग- उसी इकाई को आवश्यक संख्या में ही पदों का परिविस्तारक्ष किया जाय, जहाँ पर उनकी मांग का पूर्ण औचित्य हो, अन्यथा नहीं।
घ- सामान्य परिस्थितियों में किसी व्यक्ति विशेष के स्थानान्तरण/समायोजन तथा नवीन अभ्यार्थियों के चयनार्थ पदों का परिविस्तारण किसी भी स्थिति में न किया जाय।
च- परिविस्तारणार्थ भावी आदेशों में, परिविस्तारित होने वाले पद जिस इकाई में स्वीकृत व पद-स्थापित (sanctioned and entertained) हों, उसका पूरा नाम/पता तथा सम्बन्धित परिषदादेश, जिससे गत वर्ष में उनकी निरन्तरता स्वीकृत की गयी हो, का पूर्ण सन्दर्भ अवश्य ही निर्दिष्ट किया जाय।
छ- मात्र तीन से छः माह के लिए ही परिविस्तारण किया जाय। इससे अधिक समयावधि अथवा स्थायी परिविस्तारणार्थ आवश्यक प्रस्ताव परिषद सचिवालय को भेजे जायं।
इस अध्यादेशों/दिशा-निर्देशों का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित किया जाय। इनके उल्लंघन अथवा अतिक्रमण के मामलों में सम्बन्धित अधिकारी आवश्यक प्रशासनिक कार्यवाही के पात्र होंगे।